Monday 1 December 2014

*आँगन*
उस पर्ची को मैने बहुत संभाल कर रखा था| ६ साल पहले जब राघव बाबा गाँव छोड़ कर जा रहा थे, तब उस पर्ची में मुझे अपना पता लिख कर दे गये थे और कह गये थे कि मुझसे मिलने ज़रूर आना |
मैं और राघव बाबा गाँव के प्राइमरी स्कूल मे साथ मे पढ़ते थे | वो पढ़ाई मे हमेशा से ही अच्छा था | और मेरा मन शुरू से ही पढ़ाई में नही लगा | आठवीं के बाद घर वालों से स्कूल से नाम कटा कर खेतों में लगा दिया | कहते थे बहुत पढ़ लिया, अब अपने बाप के साथ खेतों मे जाया कर | काम करना सीख | कुछ कमा कर घर लाया कर |
राघव गाँव के सेठ का लड़का था | घर मे बहुत पैसा था | घर भी उसका कुछ महल से कम ना था | हमारी तब भी एक झुग्गी झोपड़ी ही थी | अँग्रेज़ी भी उसने अच्छी सीख ली थी | अँग्रेज़ी की सारी कविताएँ उसे ज़बानी याद थीं | और हमने तो 'हाउ आर यू' और 'आई एम फाइन' के अलावा कुछ सीखा ही नही था |
उसकी माँ नहीं थीं | हमरी देखा देखी हमरी अम्मा को ही अम्मा कहते थे | हमरे बाबा उनके घर पहले काम करते थे |
आठवीं के बाद उसके पापा की शहर मे सरकारी नौकरी लग गयी | उसका पूरा परिवार तभी से वहाँ चला गया | उसके दादा जी को छोड़ के | वे भी पिछली बरसात ही गुज़र गये | उसके पापा आए थे| मैने उनसे पूछा था कि राघव बाबा कैसे है ? उन्होने शायद मुझे पहचाना नहीं होगा | पाँच साल में शायद भूल गये होंगे | अरे बड़े शहर मे होता होगा ऐसा |
पिछले ६ साल मे मैने हमेशा उससे मिलना चाहा था | रोज़ सोचता था कि उससे मिलने जाउँगा | कभी पैसे नहीं होते तो कभी बाबा रोक लेते | एक बार तो जब जाने का सोच लिया था, तब ये सोच के डर गयाथा किअगर उसने मुझे नहीं पहचाना तो ? उसके तो अब कई दोस्त बन गये होंगे ? मुझे याद भी क्यूँ रखेगा ?
पर फिर कब तक खुद को रोकता | इस बार चला ही गया | पैसे ज़ुहाए थे | अम्मा को बता दिया था | बोला था दो दिन मे वापस आ जाउँगा | मुझे क्या पता था वहाँ जाने मे ही एक पूरा दिन लग जाएगा | और फिर उस बड़े शहर मे कैसे ढूंढता उसको | बस हाथ में एक पर्ची पर पता लिखा हुआ था | और उसका नाम मालूम था | गाँव मे तो सब उसे छोटा सेठ ही कहते थे | और कुछ भी ना मालूम था | मोबाइल नंबर भी नही था उसका |
पर मुझे अपने दोस्त से मिलना था | उसे अपने शादी की खुशख़बरी देनी थी |
और जब ठान ही लिया था तो कैसे बिना मिले आ जाता उससे |
जब तक हारकर उसके घर के बाहर पहुँचा तो देख कर दंग रह गया | ये घर तो उसके गाँव की हवेली से भी बड़ा था | मुझे समझ नहीं आता कि दो लोगो के लिए इतना बड़ा घर किस काम का |
डरते डरते उसके घर की घंटी बजाई | एक बड़ा से कुत्ता मुझे देख कर लगातार भौंक रहा था | अंदर से आवाज़ आई | शायद कुछ अँग्रेज़ी में बोला था | मुझे समझ नहीं आया | मैं वहीं खड़ा रहा | पर किसी ने कपाट ना खोला |
मुझे लगा कि शायद मुझे वापस चले जाना चाहिए |
पर मुझे अपने दोस्त से मिलना था | मैने दोबारा घंटी बजाई | इस बार दरवाज़ा खुला | पर वो राघव ना था | शायद उसके घर काम करती रही होगी | मैने कुछ बोला भी ना था कि उसने पहले ही मुझे देख कर कह दिया " साहेब नहीं हैं | और घर मे काम करने वाले भी हैं | किसी और घर जाओ |"
मैने शाहर जाने के लिए नयी बू-शर्ट सिलवाई थी | और उसने हमको देख के ऐसे कह दिया | बहुत बुरा लगा | कम से कम एक बार हमसे पूछ तो लेती हम हैं कौन |
पर हम भी उनमे से नहीं जो डर के भाग जाएँ | हमने भी पलट कर पूछ लिया " राघव बाबा कब तक आएँगे?"
पर तब तक दरवाज़ा बंद हो चुका था | आवाज़ ज़रूर आई | " शाम को आएँगे| टाइम नहीं पता | चाहो तो इंतज़ार कर लो | बाहर बैठ जाओ कुर्सी पर |"
मन मे ख़याल आया कि गाँव वापस चला जाउँ | वहाँ लोग अच्छे हैं | कम से कम घर आए से पानी तो पूछते हैं |
पर फिर वहीं बैठा रहा | कुत्ता भी थोड़ी देर में चुप हो गया | दोपहर से शाम हो गयी | काम करने वाली भी घर में ताला मार के चली गयी | मैं फिर भी वहीं बैठा रहा | मन तो हुआ था की उठ कर बाग मे चला जाउँ | पर फिर सोचा कोई हमे चोर ना समझे |
शाम से रात भी हो चली थी | माली भी आया और चला गया | ना उसने कुछ बोला ना हमने |
अब तो रात होने लगी थी | उसके आस पास के घरों में भी हलचल होने लगी थी | बहुत बड़े बड़े घर थे | हमे घबराहट हो रही थी | पर विश्वास था कि राघव बाबा आएँगे |
और फिर एक बड़ी काली गाड़ी आई | उसमे से कोई उतरा | बढ़ियाँ जीन्स, जुटे और शर्ट में |
जब गौर से देखा तो राघव था | मैं दौड़ कर गया उसकी तरफ | पहले तो वो दूर हट गया | पर फिर जब पहचाना तो गले लगा लिया | "रवी तुम यहाँ कैसे ? मैं तुम्हे बोहट याद करता था | कब से तुमको मिलना चाहता था | गाँव आना चाहता था | कभी मौका ही नहीं मिला | "
मेरे आँखो से आँसू निकल आए | हाथ पैर काँप रहे थे | पर खुशी थी कि उसने हमे पहचाना | हमारा इंतज़ार सफल हुआ था
मुझे अच्छा लगा | मैने भी उसे अपनी शादी के बारे में बताया | उसने वादा भी किया कि वो घर ज़रूर आएगा |
मुझे रात में अपने संग ही पलंग पर सुलाया | हमे बहुत खुशी हुई |
सेठ साहब काम से बाहर गये थे | दो दिन बाद लौटते | उसने हमसे कहा था कि रुक जाओ | मन तो हमारा भी था पर हम अम्मा से कह के आए थे कि हम जल्दी आएँगे |
दूसरे दिन सुबह उसने नाश्ते मे जूस भी पिलाया | और कुछ अँग्रेज़ी पकवान थे | हमारा मन नहीं किया उन्हे खाने का | वो कुत्ता सोफे पे बैठा था | हमारे गाँव मे कुत्ते तो घर के भीतर भी नहीं आते |
अपना घर दिखाया | बाहर से जैसा दिखता था, उससे भी बड़ा था | वो जो बजाने वाला होता है, जो पिक्चर मे हीरो बजता है, हम नाम भूल गये, वो भी था | बड़े बड़े शीशे के दरवाज़े थे | यहाँ तक घर मे हवा मे खुशबू थी | हर कमरे में ठंडा करने वाला था | किचन और बातरूम में भी छोटे छोटे पंखे थे | हर कमरे से लगे बाथरूम थे | बड़ा से खाना घर था | बस एक आँगन नहीं था | हमे बड़ा अज़ीब लगा |
गाँव मे हर घर मे आँगन होता है | हमसे रहा नहीं गया | उससे पूछ लिया " राघव बाबा आपके घर मे आँगन नहीं है ? "
वो थोड़ा हंसा और फिर बोला " डिज़ाइनर्स ने नहीं बनवाने दिया "|
उस तीन साल की बच्ची ने भी पूछ लिया "चाचा,आँगन क्या होता है ? "
मैं आश्चर्यचकित रह गया | उसने भी उसे अँग्रेज़ी मे बाल्कनी कह के समझा दिया |
मैने जाते जाते उससे कह ही दिया " छोटे सेठ जी, गुड़िया को कभी गाँव ले आईएगा | इसे आँगन दिखा देंगे |"

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