Sunday 22 January 2017

ये जो सर पर चुनर तूने बड़े सलीके से डाली है
अरमानो की अर्थी तूने हाय! बड़े तरीके से निकली है|
उस सर्दी की धूप में बैठे, जो सपने तूने बोए थे
कहती तो थी पढ़ूंगी आगे, अफ़सर बनूँगी
बड़े शहर में जाकर, बेटी होने पे नाज़ करूँगी
क्या हुआ?
ये शादी को तूने अधमरे मन से हां कह कर
चुनर से सर ढँककर, मेहन्दी रचाकर
कक्षा से नाम काटकर
सपनो को दफ़ना दिया?
क्या किया?
अरे पगली,
वो तेरे सपने वाला बंगला खाली रह जाएगा
तेरी अफ़सर वाली कुर्सी, फटे कुर्ते वाला ले जाएगा |
कह दे उनसे, बस एक बार, तेरे सपने उँचे हैं
जज़्बा तेरा सक्त है, इरादे अडिग|
जब लड़के वाले आए थे, तेरे पापा से बतियाए थे
'मेरी लाडो है ये' तेरे पापा दहेज की बात पर दोहराए थे
जा कह दे उनसे, उनकी लाडो उड़ने को बेताब है
आज नहीं, तो कब कहेगी ?
चल आज फिर इस सर्दी की धूप में बैठकर
सपने बोते हैं
एक तेरा, एक मेर
सर की चुनर को कमर में कसते हैं
चल उड़ते हैं
मुस्कुराते हैं
जीते हैं, इस बार
अपने लिए, अपने सपनों के नाम!