Monday 29 December 2014

ए ज़िंदगी के मुसाफिरों-
ये जो धरती है वो उसकी है
टुकड़े टुकड़े करके, ना अपना घर समझ लेना |
भर के जल गंगा का मुट्ठी में, ना अपने पाप धो लेना
ये महफ़िल उसी की है, ना अपना हक समझ लेना |
...
ये जो बादलों का झरना है, पहाड़ों की जो चोटी है,
ये महफ़िल उसी की है, करिश्मा उसी का है |
हरे पेड़ों पे यूँ कोयल का इठलाना,
सूखे में भी पानी का एक कतरा मिल जाना,
ये हरियाली उसी की है,
ये नदियाँ उसी कीं हैं |
ये गर्मी मे जो ठंडक है, जो ठंडी में भी गर्मी है,
ये महफ़िल उसी की है, करिश्मा उसी का है |
ये खुशियों का जो मंज़र है,
दुखों का जो खंडहर है,
ये किल्कारी उसी की है,
ये गुस्ताख़ी उसी की है |
ये महफ़िल के आँगन मे मिलना और बिछड़ जाना,
ये नफ़रत उसी की है, मोहब्बत उसी की है |
मंदिर से जो मस्जिद को जो रस्ता मुड़ता है,
ये हिंदू भी उसी का है, मुसलमा उसी का है |
ये धर्मों का जो मेला है,
ये रिश्तों की जो माला है,
हर एक मोती उसी की है,
धागा उसी का है |

ये महफ़िल उसी की है, अफ़साना उसी का है...
           

 

Friday 12 December 2014

एक ज़ुर्म की सज़ा जो रेती गयी बादलों के कंठ पे
आँसुओं की बारिश, बरस पड़ी माटी की फीकी सी सुगंध पे
वो ज़ुर्म भी तो था, प्रभाकर को छिपाने का
प्रकाश को अपने अंदर ही निगल जाने का|
सज़ा-ए-ज़ुर्म का सिलसिला तो गुनाहों से वाकिफ़ था
बस अंत सज़ा के, एक नन्हा हरा पौधा माटी में उपजाया था
हवा का झोंका एक ज़ोर से फिर उसको हिलाया था
चाँद ने उसको 'लल्ला' कहके बुलाया था
बस इंसा ने धार लात उसपे, उसको फिर सज़ा का पैगाम सुनाया था |

    

Wednesday 10 December 2014

अब कुछ गिले तो हमारे दिल में भी पनपे हैं,
खैर तो बस इतनी है कि उनकी जड़ों को
हमने सींचना वाजिब नहीं समझा |

Thursday 4 December 2014

वो फिरी सी इक गली के छोर पर
मिट्टी के मकान के बाहर
सने चौखाटे पर बैठ
'मैया' हर भोर, सांझ
खत का रास्ता टेरती थी |
बेटा सरहद पर जो था !
वही धानी सिकुड़ी धोती
मुरझाई त्वचा और काँच का कड़ा
दिन कारगिल से विधवा वहीं अडिग अडी थी |
तस्वीर लल्ला की
अब तो हर डाकिया को रटी थी |
गाँव, मोहल्ला
टोली, चौपरा
आस हर ओर लगी थी |
एक रोज़ जो संदेशा आया
चीख पर उसकी साँस अटकी थी
निकलता आंस भान्त भर तब तक
उसकी कब्र को मिट्टी खुदी थी |
गली के उस  भरे छोर पर, तबसे
इक फूल तक ना टिका था-
बुढ़िया का दर्दनाक इंतकाल
सबको खूब खला था |
 

Wednesday 3 December 2014

ये व्याकुल मन
अब संभाले ना इस दिल की पथरीली दीवारों में
लगे भागने
कभी उधर कभी इधर
कभी उस रोज़ की बातों पे|
सिसके, दहके
मुड़ मुरुड़ के व्याकुलता उभरे
बस दोहराए इतना
कि रह रह कर
रोज़ , दो रोज़
उनकी याद सताए |
        

Monday 1 December 2014

*वो*
सिर पर एक पानी का मटका और दूसरे हाथ में नन्ही सी जान को कस कर थामे थी | पाँव मे बिछुवे, राजस्थानी कड़े और पुराने नागरे | एक लंबा पीला बेरंग सा घागरा, उपर एक फीका नीला ब्लाउस| सर से ली हुई कढ़ी धानी चूनर दांतो से दबाये हुए थी | गोरी नाज़ुक त्वचा, बड़ी नाथ, तीखी भूरी आँखे, गोल माथबेंदी, बाजुओं मे कड़े, और सीने से लगा एक भारी हार |
कड़कती धूप, जलती रेत ,छलकता पानी, तापता रेगिस्तान, और वो !
बाबा, कहो आज कौन सी कहानी सुनोगे?
वो तोते वाली, या आज फिर परिलोक ले जाओगे !
कहो बाबा, आज कहा घुमाने ले जाओगे?...
पास वाले बगीचे में, या कंधे पर मेला दिखाने ले जाओगे !
कहो आज कितनी गेंदो मे मुझे आउट कर पाओगे?
और कितनी बार हर खेल में, तुम 'चोर' बन जाओगे !
बाबा, कहो कब तक मुझे उंगली पकड़, बाज़ार ले जाओगे?
कब तक मुझे पालने में यूँही झूला झुलाओगे!
कहो, किस रोज़ मुझे टाफी दिलाने ले जाओगे?
आफ़िस से आकर फिर कब मुझे स्कूटर से टहलाओगे!
चुप छुपा कर किस क्रिस्मस ,मेरे मोज़े में तोहफे डाल जाओगे?

सुनो बाबा, कब तक अपने सपने तोड़ कर,
मेरे अरमान सजाओगे?
किस रोज़ मुझे मिलने तुम फिर धीरे से आओगे?
काम छोड़ कर कब तक मुझसे, घंटो गप्पे लड़ाओगे!
बेटा कहकर फिर कब मुझको पुचकारने आओगे?
बाबा, वो कहते हैं, बेटी सयानी है ;
फिर किस रोज़ तक तुम मुझको 'बच्चा' कहते जाओगे?
बाबा, कह दो कब तक हर मुसीबत
मुझको अपने साए मे छुपलाओगे?
कह देना बाबा तुम अम्मा से भी,
बेटी पराई नही करोगे ;
बस हर दम साथ तुम मेरे-ऐसे ही रहोगे |
किस रोज़ बाबा तुम फिर मुझे गले लगाने आओगे
कह दो किस रोज़ तुम मुझे नयी गुड़िया दिलवाओगे?
कब तक हर ठोकर से तुम मुझको ऐसे ही बचाओगे?
बाबा हर ग़लती जो डाँट लगाई,
माफी उसकी दे देना,
बस हो तुमसे इतना तो-
हर जन्म मुझे अपनी गोद में लेना !!
*दोस्त*
तू जाकर उससे कह क्यूँ नहीं देती ? किस दिन का इंतज़ार कर रही है ?
क्या कहूँ ? प्यार करती हूँ उससे ? जनता है वो |
फिर क्या दिक्कत है ?...
वो किसी और से प्यार करता है | आज वो उसके साथ नहीं | पर उसी का होकर जीना चाहता है |
फिर, अब तू क्या करेगी ?
मैं भी अपने प्यार की होकर जीना चाहती हूँ | तू है ना मेरे साथ ?
हमेशा | पर इतना आसान नहीं होता ये सब |
तू क्या जनता है प्यार के बारे में ? तूने तो कभी प्यार किया ही नहीं |

क्या कहता उससे? कि मेरा प्यार भी किसी और से प्यार करता है ? क्या बताता उसे? की मेरा प्यार मेरे बगल बैठ के अपने प्यार के बारे में बात कर रहा है ? क्या कहता की मेरा प्यार किसी और का होकर जीना चाहती है ? या कह देता कि उसी से प्यार करता हूँ ?
दोस्त हूँ, खुश हूँ !
*The Solemn Departure*
Just before you were gone-
The autumn ended
Smiles faded...
Wind blew
And you were gone!

The heart sinked
The saucer dropped
The lady died
And you were gone!
Just before you were gone-
The empty tea cup,
The irrelevant news,
The barking dog,
All shut
And you were gone!
Just before you were gone-
The train whistled
The fingers crossed
Lips touched
Days ended
And you were gone!
Farewell!!
*भीख*
मैं वहाँ घुटनो पर बैठी हर बार की तरह उनसे भीख माँग रही थी:
" भगवान जी बस आज बचा लो, अगली बार गाड़ी पक्का धीरे चलाउंगी | बस इसको मरने मत देना वरना पापा फिर कभी वापस गाड़ी नही देंगे | "
उन्हे तोड़ा घूस देकर भी पटाना चाहा :...
" आज संभाल लो आप, दो किलो बेसन के लड्डू चढ़ाउंगी वो भी अपनी जेब से पैसे लगा कर | बस आज आखरी बार बचा लो | "
मेरा गिड़गिडाना अभी चल ही रहा था, की उसकी माँ पीछे से भागती हुई आईं | मैं डर गयी थी की कहीं वो मुझे देखकर भड़क ना पड़ें या कहीं मुझे पुलिस के हवाले ना कर दें |
मैं झट से जाकर मूर्ति के पीछे छिप गयी |
उनकी सिसकियों के आहटें सुनाई दे रहीं थीं | धीरे से झाँक कर देखा तो उनकी सफेद साड़ी पूरी खून से रंगी थीं | उन्ही के बेटे के खून से | माँग सुनी थी | ना कलाई में कड़े थे ना पैरों में बिछुवे |
उन्होने वहाँ भीक नहीं माँगी | ना ही गिड़गिडाई | बस उपर वाले से इतना कह गयीं:
' अगर मुझसे मेरा आखरी सहारा छीना, तो मेरे लिए भी अपने घर में दरवाज़े खुले रखना | कोई नहीं बचेगा जिसके लिए जी सकूँ मैं | '
मैं सुन्न रह गयी | अपनी ग़लती पर पछताने के सिवाय और कर भी क्या सकती थी | पर शायद पहली बार फूट फूट कर रोने का दिल कर रहा था |
और फिर दुवा माँगी तो बस इतनी की
" इस बार मेरी मत सुनना आप | बस उनकी सुन लो | एक माँ को उसका बेटा लौटा दो | उसे उसकी ज़िंदगी की भीख दे दो भगवान| "
* एसिड अटैक*
आज उसको देखने लड़के वाले आने वाले थे | सुबह से उसने हज़ार बार शीशे के सामने खड़े होकर अपने आपको निहारा होगा | कभी पीला गुलाबी सूट पहन परान्दा लगा कर देखती, तो कभी नया वाला अपना धनी पटियाला पहन कर इठलाती | कभी आँखों के नीचे मोटा काजल लगती तो कभी आँखो को सूनी ही रहने देती | बालों मे कभी चिमटियों का भंडार होता तो कभी उन्हे हवाओं के संग उड़ने देती | ओढनी को कभी सिर पर रखती तो कभी कंधे पर समेट लेती |
आते जाते हौले से आईने मे खुद को देख मुस्कुरा रही थी | कभी होठों पर ...सीटी होती तो कभी पुराने गानों के लफ्ज़ | आज तो खाने में नमक भी ज़यादा कर दिया था उसने | पानी भी ग्लास की सीमा से बाहर तक भर दिया था | लज्जा तो रही ही थी पर कई दिनों के बाद खुश थी |
क्या हुआ अगर एसिड अटैक के बाद उसकी शक्ल पर दाग पड़ गये | उसने अपनी एक आँख खो दी | पर जज़्बा तो कइयों से ज़्यादा था उसमें | आज भी खुश तो रहती है |
कई लड़कों ने उसकी शक्ल देख कर रिश्ते के लिए मना कर दिया था | शायद ही किसी ने उसके दिल में झाँक कर देखा था | इन सब बातों से निराश नहीं हुई पर वो | कभी हौसला नहीं झुका उसका |
ये पहला लड़का था जिसने उसकी तस्वीर देख कर उससे मिलने की इच्छा जताई थी | जिसने उसे पहली बार ही देख कर कहा था की शायद उसे और लड़कियों में शक्ल तो मिल जाएगी, पर ऐसा सच्चा इंसान नहीं मिलेगा |
एक सलाम उनके नाम !!
*Thereafter*
She hid her face in his chest , held him tight and stood close. He wraped her in his arms and let the breeze hit them together, the waves silently kissing their feets.
It was the last day that they were together. Tears rolled down her cheeks. All she could think of were the happy days. They laughed, trolled, giggled, grined, cried together for this complete one year. They were a perfect mismatch. Still happier than the rest.
The last hug, they promised to be together THEREAFTER !
*Innocence*
I actually did not believe it when she said, "You are a gud friend". She's too small to understand these heavy words! And its just two days that we have known each other.
What happens is, I sit on the slab, and watch her work. The dishes, the food, the cleaning; she does it all. The first time that I saw her use the table to reach the gas, I laughed. She laughed along!
I never asked her to share. But just two evenings and I know her in and out. She misses her fa...ther. She wasn't lucky enough to see her mother. She fakely recalls meeting her sister much before her marriage. She lives with her relatives and works to feed her own mouth. She's just 12 !
The second evening that we met she told that she had waited the complete day to see me again. I was overwhelmed.
The knife hurts her at times. She burns herself while cooking. No one cares. She says,"I am use to all this".
She smiles when I share my belongings with her. She loved the old slippers that I offerred her. She sighed when I held her by her shoulders.
She runs to me every morning, to ask me if she should lay the breakfast.
Its her who has to look after the two kids of the relative. She has to do the household even at her place. She still smiles!
Perhaps, she is Innocent !
*Dance*
"Our Rano dances so well. Beta show uncle and aunty your dance" her mother gushed, when the guests had come over for the dinner.
And she happily performed the few steps that she had learnt from the latest Madhuri Dixits dance, when she went to watch the television at the neighbours place.
She just wished she was rich. Not because she had dreamt of luxuries, but coz she had always wanted to have a dance teacher.
That day the guests actually appreciated her.
"You dance really well Rano" said the dark one.
"I can help you, if you want to learn it better by professionals" offered the bald gentleman.
She willingly ran towards him and sat in his laps.
"Uncle take me to the teacher. I want to learn. I wanna become a dancer. Look I learnt this all by myself"
Ta-Tha--Thai-Tat
She danced gracefully.
"Hamari Rano ko dancer banna hai! Hum bitiya ko zarur nachaenge" replied his uncle.
She happily sang herself to her room planning of how would she be now. How good a dancer would she become.
Meanwhile, the guests and her parents had a talk about taking Rano to Mumbai for her dance classes. Her father agreed as the person offering was no one other than his own cousin brother.
"Bhaiya, do not worry. We'll keep her safe. And then we'll bring her to meet you people every 6months. You have my number know. You can call me anytime whenever you feel like talking to her".
"Its not about that Chotu. Its just that we are poor . We have never been to such big cities. I fear the city would gulp her down. And I have no money to offer" the worried father said.
"You need not worry about that Bhaiya. She is even my daughter. Trust me. This village won't appriciate her talent. She'll soon be back as a professional dancer."
Of all the conversation, it was decided that the 12 year illitrate girl would be going to Mumbai in next three days.
It was only her mother who wasn't in the favour of the decision.
She kept on repeating "I don't find it safe. Your brother did not offer any help when we asked for money to send her to the school. And all of a sudden he is being too good. What harm is it if she works like us, and earns her meal. What if our village is a small one. Atleast it lets us survive. And then Mumbai is too far. We can not even afford to go and meet her."
"Everything would be fine Suman. Chotu has changed. He is a nice man. He'll take care of our Rano."
Three days later Rano wore her favourite yellow frock that her mother had stitched. She carried a small 'Jhola' in which she had kept the two frocks that she had and her only doll. She was glad. She couldn't wait any longer for her uncle to arrive. The past two days were no less than a year to her. She sat on the footsteps, her hair tied in a pony, waiting for him to come and take her closer to her dream. Her mother sat on the 'charpayi' looking at her daughter. She couldn't believe that she was going this far from her. She hadn't ever lived without her a single day. Tears rolled down her eyes.
She was too young to understand this.
Her father returned from the field early that day to see her off.
It was 5 hours later, when Rano was fast asleep on the doorsteps that her uncle arrived. She instantly woke up when she heard the cars horn. She quickly ran towards him .
"I was waiting for you uncle". Chalo, lets go. We'll miss the train otherwise.
She abruptly waved gudbye to her parents.
Before leaving, she handed over her doll to her mother asking her to hug her every time she misses her.
The family cried.
Rano sat in the car and the car moved away. The parents stood there. Crying at their only childs departure. But they knew she would be happier there.
Its 8 years now. Rano hasn't returned. No calls, no contacts. Not even her uncle showed up ever again. The poor parents can not afford to go and look for her. Her father still calls at her uncles number everyday. It switched off since the day he left with his daughter.
Her mother sits with the doll, singing lullabies to it. No tears roll down now from her eyes. She is mentally sick. The fathers heart still believes that Rano would return. He prays for the same every day.
He refuses to agree that Rano was the same girl whom the neighbours told they read about in the newspaper.
She was brutally raped and murdered a week later after she left.
*बाल विवाह*
उससे पूछा नहीं था जब उसकी बाली उम्र मे ही उसका ब्याह रचा दिया था | उससे तो बस इतना कहा था की उसका भी इस खेल में उसकी गुड़िया की तरह, उस "गुड्डे" से ब्याह हो रहा था| और वो नासमझ भी उस खेल का हिस्सा बनने के लिए खुशी खुशी राज़ी हो गयी थी | उसे क्या पता था कि वो उसकी ज़िंदगी का आख़िरी खेल बन जाएगा |
कि शायद उसके बाद उससे उसकी गुड़िया भी उससे छिन जाएगी | और फिर उसके हाथों में चाभियाँ और चूल्‍हे की 'फुकनी' थमा दी जाएगी |
मालूम होने पर वो शायद इतने चाव से उस रोज़ त्यार ...ना होती | अपने नये लहंगे को पहन माँ को बार बार ना दिखती | अपनी सखियों को लेजाकर अपने बचपन के ख्वाबों को उजाड़ने के लड्डू तो कभी ना खिलती | रोकर घर में ही हमेशा की तरह फिर कहीं चुप जाती | अपनी गुड़िया संग जाकर फिर ताल के किनारे बैठ जाती| या फिर बिदाई में खुशी से बाबा को गले लगाती | उसे तो बस उस समय गाड़ी मे बैठने का शौक था | या फिर किसी ने बस उसे इतना ही बताया होता कि पारो की तरह उसका भी गुड्डा हमेशा के लिए उसे उसके गाँव से दूर लेजाएगा, तो शयड वो कभी राज़ी ही ना होती | रो रो कर फिर सर घर पर उठा लेती | हर ज़िद कि तरह इसको भी मनवा लेती |
उस रोज़ उसे क्या मालूम था की उसका आँगन उससे छिन रहा था | वो अपनी सखियों से बिछड़ रही थी | उसको तो खबर भी ना थी कि वो अपने माँ का पल्लू छोड़ के जा रही थी | वो तो बस घर आए मेहमानो को देख कर इसलिए खुश थी क्यूँ कि उसको खेलने के लिए उसकी हमउम्र के बच्चे मिल गये थे| अफ़सोस तो बस इस बात का था कि जिस सिंदूर को रोज़ माँ की माँग में देख वो सवाल पूछती थी, उसी सिंदूर ने उसका लड़कपन उससे छीन लिया | वो तो बस अपने गुड्डे के साथ उस महल में जाना चाहती थी जहाँ उसकी दादी ने कहा था कि उसे अच्छे अच्छे पकवान खाने को मिलेंगे | अच्छे कपड़े मिलेंगे | एक नयी गुड़िया मिलेगी | नयी चोली ओढना चाहती थी |
उसे किसी ने ये नहीं बताया था कि वहाँ जाकर वो अपने अम्मा-बाबा से दूर हो जाएगी | फिर कभी अपने स्कूल नहीं जा पाएगी | उसकी माँ वहाँ उसे खाना नहीं खिलाएगी | वहाँ उसकी सखियाँ ना होंगी | ना ही वो अपने समय पर सो पाएगी |
अब तो बस उसको चूल्हा चौका करना था | कपड़े धुलने थे | कोठरी में अकेले बैठ कर घर जाने को रोना था | लोगों के ताने सुनने थे | काम कर के भी 'कलमूहि' कहलाना होगा | फिर कभी बाबा संग बाज़ार ना जाना होगा | अपनी गुड़िया को छुपा कर अलमारी में रखना होगा | अपने नाज़ुक हाथों कर छड़ियाँ खानी होंगी |
और उसे खुद १० साल की होकर, २० साल के गुड्डे के अरमान पूरे करने होंगे |
*आँगन*
उस पर्ची को मैने बहुत संभाल कर रखा था| ६ साल पहले जब राघव बाबा गाँव छोड़ कर जा रहा थे, तब उस पर्ची में मुझे अपना पता लिख कर दे गये थे और कह गये थे कि मुझसे मिलने ज़रूर आना |
मैं और राघव बाबा गाँव के प्राइमरी स्कूल मे साथ मे पढ़ते थे | वो पढ़ाई मे हमेशा से ही अच्छा था | और मेरा मन शुरू से ही पढ़ाई में नही लगा | आठवीं के बाद घर वालों से स्कूल से नाम कटा कर खेतों में लगा दिया | कहते थे बहुत पढ़ लिया, अब अपने बाप के साथ खेतों मे जाया कर | काम करना सीख | कुछ कमा कर घर लाया कर |
राघव गाँव के सेठ का लड़का था | घर मे बहुत पैसा था | घर भी उसका कुछ महल से कम ना था | हमारी तब भी एक झुग्गी झोपड़ी ही थी | अँग्रेज़ी भी उसने अच्छी सीख ली थी | अँग्रेज़ी की सारी कविताएँ उसे ज़बानी याद थीं | और हमने तो 'हाउ आर यू' और 'आई एम फाइन' के अलावा कुछ सीखा ही नही था |
उसकी माँ नहीं थीं | हमरी देखा देखी हमरी अम्मा को ही अम्मा कहते थे | हमरे बाबा उनके घर पहले काम करते थे |
आठवीं के बाद उसके पापा की शहर मे सरकारी नौकरी लग गयी | उसका पूरा परिवार तभी से वहाँ चला गया | उसके दादा जी को छोड़ के | वे भी पिछली बरसात ही गुज़र गये | उसके पापा आए थे| मैने उनसे पूछा था कि राघव बाबा कैसे है ? उन्होने शायद मुझे पहचाना नहीं होगा | पाँच साल में शायद भूल गये होंगे | अरे बड़े शहर मे होता होगा ऐसा |
पिछले ६ साल मे मैने हमेशा उससे मिलना चाहा था | रोज़ सोचता था कि उससे मिलने जाउँगा | कभी पैसे नहीं होते तो कभी बाबा रोक लेते | एक बार तो जब जाने का सोच लिया था, तब ये सोच के डर गयाथा किअगर उसने मुझे नहीं पहचाना तो ? उसके तो अब कई दोस्त बन गये होंगे ? मुझे याद भी क्यूँ रखेगा ?
पर फिर कब तक खुद को रोकता | इस बार चला ही गया | पैसे ज़ुहाए थे | अम्मा को बता दिया था | बोला था दो दिन मे वापस आ जाउँगा | मुझे क्या पता था वहाँ जाने मे ही एक पूरा दिन लग जाएगा | और फिर उस बड़े शहर मे कैसे ढूंढता उसको | बस हाथ में एक पर्ची पर पता लिखा हुआ था | और उसका नाम मालूम था | गाँव मे तो सब उसे छोटा सेठ ही कहते थे | और कुछ भी ना मालूम था | मोबाइल नंबर भी नही था उसका |
पर मुझे अपने दोस्त से मिलना था | उसे अपने शादी की खुशख़बरी देनी थी |
और जब ठान ही लिया था तो कैसे बिना मिले आ जाता उससे |
जब तक हारकर उसके घर के बाहर पहुँचा तो देख कर दंग रह गया | ये घर तो उसके गाँव की हवेली से भी बड़ा था | मुझे समझ नहीं आता कि दो लोगो के लिए इतना बड़ा घर किस काम का |
डरते डरते उसके घर की घंटी बजाई | एक बड़ा से कुत्ता मुझे देख कर लगातार भौंक रहा था | अंदर से आवाज़ आई | शायद कुछ अँग्रेज़ी में बोला था | मुझे समझ नहीं आया | मैं वहीं खड़ा रहा | पर किसी ने कपाट ना खोला |
मुझे लगा कि शायद मुझे वापस चले जाना चाहिए |
पर मुझे अपने दोस्त से मिलना था | मैने दोबारा घंटी बजाई | इस बार दरवाज़ा खुला | पर वो राघव ना था | शायद उसके घर काम करती रही होगी | मैने कुछ बोला भी ना था कि उसने पहले ही मुझे देख कर कह दिया " साहेब नहीं हैं | और घर मे काम करने वाले भी हैं | किसी और घर जाओ |"
मैने शाहर जाने के लिए नयी बू-शर्ट सिलवाई थी | और उसने हमको देख के ऐसे कह दिया | बहुत बुरा लगा | कम से कम एक बार हमसे पूछ तो लेती हम हैं कौन |
पर हम भी उनमे से नहीं जो डर के भाग जाएँ | हमने भी पलट कर पूछ लिया " राघव बाबा कब तक आएँगे?"
पर तब तक दरवाज़ा बंद हो चुका था | आवाज़ ज़रूर आई | " शाम को आएँगे| टाइम नहीं पता | चाहो तो इंतज़ार कर लो | बाहर बैठ जाओ कुर्सी पर |"
मन मे ख़याल आया कि गाँव वापस चला जाउँ | वहाँ लोग अच्छे हैं | कम से कम घर आए से पानी तो पूछते हैं |
पर फिर वहीं बैठा रहा | कुत्ता भी थोड़ी देर में चुप हो गया | दोपहर से शाम हो गयी | काम करने वाली भी घर में ताला मार के चली गयी | मैं फिर भी वहीं बैठा रहा | मन तो हुआ था की उठ कर बाग मे चला जाउँ | पर फिर सोचा कोई हमे चोर ना समझे |
शाम से रात भी हो चली थी | माली भी आया और चला गया | ना उसने कुछ बोला ना हमने |
अब तो रात होने लगी थी | उसके आस पास के घरों में भी हलचल होने लगी थी | बहुत बड़े बड़े घर थे | हमे घबराहट हो रही थी | पर विश्वास था कि राघव बाबा आएँगे |
और फिर एक बड़ी काली गाड़ी आई | उसमे से कोई उतरा | बढ़ियाँ जीन्स, जुटे और शर्ट में |
जब गौर से देखा तो राघव था | मैं दौड़ कर गया उसकी तरफ | पहले तो वो दूर हट गया | पर फिर जब पहचाना तो गले लगा लिया | "रवी तुम यहाँ कैसे ? मैं तुम्हे बोहट याद करता था | कब से तुमको मिलना चाहता था | गाँव आना चाहता था | कभी मौका ही नहीं मिला | "
मेरे आँखो से आँसू निकल आए | हाथ पैर काँप रहे थे | पर खुशी थी कि उसने हमे पहचाना | हमारा इंतज़ार सफल हुआ था
मुझे अच्छा लगा | मैने भी उसे अपनी शादी के बारे में बताया | उसने वादा भी किया कि वो घर ज़रूर आएगा |
मुझे रात में अपने संग ही पलंग पर सुलाया | हमे बहुत खुशी हुई |
सेठ साहब काम से बाहर गये थे | दो दिन बाद लौटते | उसने हमसे कहा था कि रुक जाओ | मन तो हमारा भी था पर हम अम्मा से कह के आए थे कि हम जल्दी आएँगे |
दूसरे दिन सुबह उसने नाश्ते मे जूस भी पिलाया | और कुछ अँग्रेज़ी पकवान थे | हमारा मन नहीं किया उन्हे खाने का | वो कुत्ता सोफे पे बैठा था | हमारे गाँव मे कुत्ते तो घर के भीतर भी नहीं आते |
अपना घर दिखाया | बाहर से जैसा दिखता था, उससे भी बड़ा था | वो जो बजाने वाला होता है, जो पिक्चर मे हीरो बजता है, हम नाम भूल गये, वो भी था | बड़े बड़े शीशे के दरवाज़े थे | यहाँ तक घर मे हवा मे खुशबू थी | हर कमरे में ठंडा करने वाला था | किचन और बातरूम में भी छोटे छोटे पंखे थे | हर कमरे से लगे बाथरूम थे | बड़ा से खाना घर था | बस एक आँगन नहीं था | हमे बड़ा अज़ीब लगा |
गाँव मे हर घर मे आँगन होता है | हमसे रहा नहीं गया | उससे पूछ लिया " राघव बाबा आपके घर मे आँगन नहीं है ? "
वो थोड़ा हंसा और फिर बोला " डिज़ाइनर्स ने नहीं बनवाने दिया "|
उस तीन साल की बच्ची ने भी पूछ लिया "चाचा,आँगन क्या होता है ? "
मैं आश्चर्यचकित रह गया | उसने भी उसे अँग्रेज़ी मे बाल्कनी कह के समझा दिया |
मैने जाते जाते उससे कह ही दिया " छोटे सेठ जी, गुड़िया को कभी गाँव ले आईएगा | इसे आँगन दिखा देंगे |"
*बलात्कार*
फिर से वही खबर " ६ साल कि बच्ची का स्कूल मे हुआ गैंग रेप" !!!
६ साल की बच्ची से कैसे उमीद की जा सकती है कि वो रेप शब्द का मतलब भी समझती होगी ? या उसे भी लोगो के ये ताने सुनने पड़ेंगे कि उसकी छोटी फ्रॉक ने उन्हे उकसाया था ? या फिर उसे अभी से उसके बेटी होने पर पछताने के लिए छोड़ दिया जाए ?
जब मैं ६ साल की थी तो शायद ही इनमे से कुछ भी समझ पाती| तब तो बस माँ के आँचल में चुप कर शरारते करती रही होंगी | अपनी नयी फ्रॉक को पहन कर बड़ा इठलाती रही होंगी | कभी ये सोचा भी ना रहा होगा कि शायद उसी फ्रॉक कि वजह से लड़कियाँ बदनाम हो जातीं हैं | किसी ने शायद कभी बताया भी ना था कि किसी रोज़ जिस स्कूल तुम जाती हो, वहाँ तुम्हे इतना दर्द भी मिल सकता है | तब तो अगर मुझे यही समझाया गया होगा कि "बेटा, जो तुम्हारा टीचर कहेगा वही करना", "टीचर को डाँटने का मौका भी मत देना" |
आज मैं जवाब मांगती हूँ हर उन माँ बापों से जो कि पैदा होते ही अपनी बेटी को ये नहीं बता देते कि बेटा तुम जो भी करोगी, या जैसे भी करोगी वो ग़लत ही होगा | क्यूँ नहीं उनको उनका नाम लिखने से पहले इस दरिंदी दुनिया से वाकिफ़ करा देते | क्यूँ नहीं बता देते उसे कि बचपन से ही उसे इस बोझ के नीचे जीना होगा की वो लड़की है | फिर भले ही वो ३ साल की हो या २६ साल की | गिद्ध जैसी आँखें उसका हमेशा ही पीछा करेंगी |
या इस तरह कहूँ, कि अगली बार जब भी आप में से किसी की भी बेटी, बहू, बहन या माँ घर से बाहर निकले उसे अच्छे से मिल लेना | क्या पता उस दिन वो आख़िरी बार बाहर जा रही हो | कोई दरिन्दा पूछ कर, या पहले से खबर देकर थोड़ी ना छेड़ेगा उसे | या उसे मौका थोड़ी ही देगा की वो आपको बता सके कि आज उसकी बारी है | अब जब हर एक घंटे में दो रेप हो रहें, है तो कब तक बचाएंगे आप अपनी बेटी या बहन को ?
या कब तक परिवार के साथ टी.वी. देखते समय हर बार बलात्कार की खबरों का चैनल बदलेंगे ? जिसकी खबर आज सुर्ख़ियों में है, वो भी तो किसी के घर की बेटी थी जिसके घर में भी शायद ऐसा ही होता रहा होगा| कब तक अपनी बेटी या बहन को इस सच से छुपाएँगे | या फिर उसे हमेशा घर मे ही छुपा कर रखेंगे ? कितना भरोसा है कि वो आपके घर में सुरक्षित रहेगी ? कभी अकेली नहीं होगी ?
या फिर हर माँ बाप, दोस्त, या भाई की तरह आप भी यही कहेंगे की आपका बेटा, भाई या पति कभी ऐसा कुछ कर ही नहीं सकता ? किसी दरिंदे के माँ बाप ने कभी बयान में भी ये नहीं कहा होगा की उसने अपने लड़के से ऐसी उम्मीद की थी | या किसी ने ये नहीं कहा होगा कि उसे ऐसे ही संस्कार दिए गये थे |
आप अपनी बेटी या बहन को हर बार उस गली या चौराहे से जाने से रोकते होगे जहाँ छिछोरे उसे छेड़ेंगे | कितनी बार आपके खुद के भाई या बेटे ने आपकी स्कूटर पर पीछे बैठ कर , बगल से गुज़री लड़की को ताड़ा होगा इसका अंदाज़ा भी है ? कभी अपने बेटे या भाई को बोला है कि चौराहे पे खड़े होकर जूस मत पीना ? या बगल से गुज़र रही लड़की की टाँगो पर ध्यान मत देना ?
कब तक किसी लड़की तो ये ताने मरोगे की छोटे कपड़े पहने थे इसलिए ऐसा था ? और अगर मारना तो उस दिन जिस दिन मुझे या हर लड़की को इस बात का भरोसा दे पाना कि अगर वो सारी पहनेगी और बालों को बाँध कर रखेगी तो कोई उसकी तरफ पलट कर भी नहीं देखेगा | अगली बार अपनी बेटी या बहन से ये पूछने से पहले कि उसकी लड़कों से इतनी क्यूँ बनती है, या उसका किसके साथ उतना बैठने है; अपने बेटे या भाई से भी यही सवाल पूछिएगा | ज़रा उसको भी उसके ट्यूशन, स्कूल, कलेज़, या आफ़िस से लेने या छोड़ने जाइएगा | उसकी भी फोन लिस्ट की खबर रखिएगा | उसे भी लड़कियों से मिलने या बात करने के लिए रोकिएगा | अगली बार अपनी बेटी या बहन की किसी फोटो पर "सेक्सी" कॉमेंट देख कर उसे उस फोटो को हटाने के लिए कहने से पहले एक बार अपने बेटे से भी पूछ लीजिएगा कि कभी उसने भी तो किसी की फोटो पर ऐसा तो नहीं लिखा |
और एक बात और, अगर आप अपने, अपने बेटे या भाई के लिए एक ऐसी लड़की चाहते हैं जो साफ हो, तो इस बात पर भी अमल करिएगा कि आप या आपका बेटा या भाई, कभी किसी लड़की को गंदा करने का ख्याल भी मान मे ना लाए |
हो सके तो किसी लड़की के पैदा होने पर रोइएगा मत | क्यूँकि जिस बेटे के पैदा होने पर आप जशन मनाएँगे, वही कल किसी चौराहे पर खड़ा होकर किसी कि बेटी या बहन छेड़ेगा |
और इसे पढ़ कर इसलिए मत भूल जाइएएगा क्यूँकि आपके घर मे सब को अच्छे संस्कार दिए जा रहे हैं | याद रखिएगा, कोई दरिन्दा अपने माथे पर कुछ लिख कर पैदा नहीं होता | और कोई हवश का शिकारी घर से बता कर नहीं निकलता |
हो सके तो किसी पीडिता को गले लगा कर उससे उसका दुख ज़रूर बाटिएगा | उसे अकेला मरने मत दीजिएगा | वो भी किसी की बेटी या बहन है |
और अगर आपमे से किसी को भी इसको पढ़ने कि उत्सुकता सिर्फ़ इसका शीर्षक देख के जागी, तो जनाब शायद आपको अपने अंदर भी झाँक कर देखने की ज़रूरत है |
*सिसकियां*
रह रह के आ जातीं-
बार, दो बार
यादों की, हाय!...
सिसकियाँ

कभी इनकी, कभी उनकी
मुलाक़ातों की
ये अलबेली
सिसकियाँ
हृदय कौंधती
बातों की,
वो अनोखी
सिसकियाँ
उफ़, ये सिमटती
बटुरती,
हिचकोलियों वाली
सिसकियाँ |
*ईद*
किस आस से आज ईद का चाँद निहारूं मैं,
जब हर रोज़ मेरा कोई अपना मर रहा है |
इस ईद किसे गले लगाउँ मैं,...
जब मेरा हिन्दुस्तान, आपस में ही लड़ रहा है |

जो ज़िंदा बच गये उन्हे मुबारक ज़िंदगी की दूं,
या किसी की कब्र पर सिवैइयाँ चढ़ाउँ,
सोच रही हूँ, अबकी ईदी,
किसी गैर के नाम ही कर आउँ |
रोज़ा रख,
आज इफतियारी पर किसकी आस लगाउँ,
पहले जाकर शिया, सुन्नियों को
कुछ मज़्ज़ब की बाते तो बताउँ |
डरती हूँ,
इस ईद कही बाहर निकली तो मैं ही ना मार जाउँ,
सोच रही,
भेड़ कपाट, ये ईद अकेले ही मनाउँ ||
उस रात सड़क किनारे लेटे बेटे ने फिर माँ से बोल दिया
"माँ फिर भूक लगी है, नींद नही आती,
थोड़ा ही सही, बस कुछ खिला दो अब|
ना हो तो , यहीं खड़े होकर,
आते जाते किसी से कुछ माँग लो" |
...
माँ क्या कहती,
बाप होता तो कुछ लाने कहती,
या फिर वहीं बैठ , बेटे की भूखी शक्ल
ताकते रहती |
रात घनी थी, चूल्‍हे में लकड़ी नहीं थी,
होती भी तो क्या पकती?
हर रोज़ की तरह,
आज फिर बेटे को भूखा ही सुलाती |
उस फटे गमछे को लपेट फिर निकली वो जंगल को,
बोला उससे "रुक जा लल्ला,
रोटी को लकड़ी लाती हूँ
बैठे यहीं पर रहना तुम,
मैं झट से वापस आती हूँ " |
बैठ आधी रात को,
बीच जंगल मे, माँ
भभक भभक कर, बस खुदा से
एक रात की भूखी नींद को रोई थी |
वापस जाकर देखा,
बेटा डटा बैठा था,
एक रोटी की आस में,
सड़क किनारे, वो हर रात सोया था |
दिन के दो पैसे से, माँ ने उसे चप्पल दिलाई थी,
सोचा भरी दोपहरी, नंगे पाव सबके पीछे दौड़ता है,
तब भी बेटे ने भूख की बात,
ही दोहराई थी |
झट जला कर चूल्हा,
पुराना तवा चढ़ाया था,
मुह बेटे के फिर से,
एक रोटी का लालसा आया था |
जब तक होता गर्म तवा,
माँ ने उसे लोरी सुनाई थी,
हर बार की तरह इस बार भी,
उसे पापा की कहानी सुनाई थी |
मन ही मन, माँ ने तब भी
उसकी नींद की गुहार लगाई थी |
किस्सा हर बार से लंबा था,
पापा का जो था,
सुनते सुनते आज फिर "लल्ला"
भूखे पेट ही सोया था,
होता भी गर्म तवा कैसे
गीली लकड़ी जो वो ढूढ़ कर लाई थी |
कैसे कहती "बेटा तुझे भूखे पेट ही सोना है,
आज भी तुझे हर रोज़ के जैसे,
फिर तोड़ा और मरना है |
उस ढाबे के बाहर जो था वो भी
कुत्ता आज खा गया था,
और हर रोज़ की तरह,
वो चिड़िया का खाना घर भी खाली था |
माँ ने भी, उस कंकाड़ि सड़क पे,
बिस्तरा डाल लिया ,
फेर बेटे से मूह,
"लाचारी का आँसू" आज फिर उसने छुपा लिया |
"मुझसे, तेरी नासमझी से कतराने की
उम्मीद ना करना,
हमे तो, बचपन से ही बंजर ज़मीन
मे बीज बोने की आदत रही है | "
मुझे मेहनत करने से कोई गिले नहीं ,
पर जब से सुना है कि -
टूटते तारे भी ख्वाइश पूरी करते हैं,
तबसे, छत पर खड़े होकर,
उनके टूटने का इंतज़ार करना-...
ज़्यादा मुनासिब लगता है !
उस रंगों से भरी डाल पर एक मुरझाया गुलाब भी अपना आशियाना बनाए बैठा था,
अस्तित्व से हार, अपने तज़ुरबों पर इठला रहा था |
कभी खुदगर्ज़ी से उपर उठकर देखना,
इंसानियत में अपना ही मज़ा है,
कभी मुर्दों को जगा कर पूछना,
जीने का भी अपना ही मज़ा है |
वैसे तो उन्हे रिश्तों मे कुछ ख़ासा दिलचस्पी नहीं थी,
पर जब से ये love affair वाली ब्यार चली है-
तबसे उन्हे कभी अकेले नहीं देखा |
कहने को तो हमे उनकी आहटो से भी प्यार हो गया,
पर उस रोज़ अगर पलकों पर पर्दे ना होते, तो और बात थी |
मुझसे बार बार कहे जाते हैं ये लम्हे कि किसी रोज़ हम फिर यादो मे लौट आएँगे तेरे दामन में,
कम से कम उस रोज़ तो हमसे नज़रे मिलाने की हिम्मत रखना !
मैने यादों के पन्नो को तो मसल कर राख कर दिया,
पर ये राख भी जब उड़ उड़ कर आती है, तो तेरी ही तस्वीर खींच जाती है |
मैं उठा था उस रोज़ फिर फिसलने से पहले,
बस पाँव धँस गये थे तबतक अफवाहों की कब्र में !
यूँ बार बार रूठ कर, 'कट्टी' ना कह जाया करो,
हर बार मनाने के बहाने मै तेरे और करीब आ जाता हूँ |