Thursday 21 May 2015

बरसो दबा कर रखा था
खत में मैने
नाम तेरा
पन्नो को पलट कर
होता था ऐतबार तेरा
कभी अकेलेपन में तो
कभी भीड़ में
जब भी लगता था तुम आओगे
तो खतों को समेट कर
अक्सर तुमसे मुलाकात
किया करते थे|

देर सबेर  कभी
जब खुद से नफ़रत होती थी
तब भी
इन खतों मे दबे नाम से
हम छुप कर
प्यार किया करते थे |

Sunday 10 May 2015

बड़े दिनो के बाद याद आज फिर अम्मा की आई है |

छोटे छोटे सपनो वाली वो मीठी पुरवाई है
सन्नाटो को चीरती वो मधुर शहनाई है
आँचल के कोनो मे सिमटी वो कठिन सिलाई है
लोरी की चौपाई से सरकती माँ अंगड़ाई है
अंधेरों में रहने वाली वो मेरी परछाईं है
बड़े दिनो के बाद याद आज अम्मा की आई है |

कभी थपकी देकर परिलोक की सैर मुझे करती है
कभी मुझे खिलाकर खुद भूखा सो जाती है
वो तो उजड़े घर मे खिलखिलती फुलवारी है
माँ तो हंस कर अंधेरे मे खुद जल जाती है
कभी कभी तो मुझे डाँट कर खुद रोने लग जाती है
हर रात अकेले सोने से पहले याद अम्मा की आती है |

भीतर भीतर बलके फिर भी रेशम से वो रहती है
तिनका तिनका बुनकर यादों की खुश्बू बोती है
दुखड़ों की नइया में बैठी वो मुझे हंसाया करती है
कभी निर्मल कभी कठोर वो कलकल बहती रहती है |

हर शाम जैसे फीकी पड़ती है
मन से बस एक आह निकलती है
माँ तू गर पास होती
तो रख गोद मे सर बस जब इतना कहती
"मेरी लाडो सबसे प्यारी"
तो मैं भी आँखे मींझ कर झट से सो जाती
माँ दूर देश में याद तेरी बड़ी आती |

     

Friday 8 May 2015

अब तो काले कजरे के पीछे से
मृगनैनी पलके हौले उठती हैं
जब खाली खाली नज़मों से
दिल की धड़कन बढ़ती है -
बस सूनेपन की बाते कहती हैं |
जब भरी दोपहरी पेड़ों के पीछे से
छाओं अंगड़ाई लेती है
कोयल की कूंक भी
भारी ठोकर सी लगती है
तब मन की कोरी दीवारें -
बस सूनेपन की बातें कहतीं हैं |
जब दर्द दुनिया का, अपने से कम लगता है
ममता का मर्म भी, पत्थर सा लगता है
भूले क़िस्सों को पढ़कर
आँखों से अश्रु गिरता है
तो चीरकर, खोखला कंठ -
बस सूनेपन की बातें कहता है |
जब मधुमास पतझर सा दिखता है
जब चंदन आँखों मे चुभता है
जब ज़ुल्फो का लहराना दुशवारी लगता है
जब बाहों में काँटा सा चुभता है
तब नर्म सा आँसू भी -
सूनेपन की बातें कहता है |
जब ज़िंदगी प्रश्‍न की पहेली लगती है
मीठी बाँसुरी करकस सी लगती है
जब प्रिय ! तुमसे नफ़रत सी होती है
तो सपनों में भी -
सूनेपन की बातें होतीं हैं |
तपती धूप के बीच
आँगन की छाँव में
चौखट की आड़ में
मिलने का-
तुम्हारा
आधा सा वादा |
अबकी फागुन
मेहन्दी के सपनो का
तुम्हारे स्पर्श का
परदेश से खत का
तुम्हारा
आधा सा वादा...
पत्थर को पूजे भारत मेरा
बेटा भूखा सोए
जिसके घर मे आटा गीला
वही दूध से नाग को धोए |
हुक्का, सिगरेट फैशन भारत का
आनाज़, फल हुए पराए
छोटे छोटे कपड़े पहने
अधनग्न हीरोइन कह लाए |
पल्लू करना हुआ पुराना
अब तो हाट पेंट्स का दौर
नमस्ते, आभार को छोड़ पीछे
हम चले हाय, हेलो की ओर |
रेप हमारा कल्चर आज का
औरत हुई खिलौना
माँ, बेटी की इज़्ज़त का
समय हुआ पुराना|
भारत में ही
भारतीयों का ढेर हुआ अब ढाँचा
नेताओं के इशारों पर
नाचे सारा ज़माना |
कुर्सी वाले चाबुक खींचे
वोटर करे तमाशा
भारत वेल चले विदेश
खोखला समाज हमारा |
कोहराम मचा था शहर मे
कुछ झटको ने इंसानिया को सहमा दिया
हर छोटे बड़े ख्वाब को मिट्टी मे मिला दिया
चट्टानो को झटके मे दफ़ना दिया
किलकरियों को आँसू बना दिया
इमारतों को हुलिया बिगड़ दिया |
जो कल तक डींगे मारा करते थे
उन्हे ज़मीन पे ला दिया
किसी को बेसहारा
तो किसी को अनाथ बना दिया |
घरों को राख,
शहर को शमशान बना दिया |
कम्बख़्त ज़्यादा ना सही
हिंदू मुस्लिम को भाई बना दिया |