Monday 1 December 2014

*ईद*
किस आस से आज ईद का चाँद निहारूं मैं,
जब हर रोज़ मेरा कोई अपना मर रहा है |
इस ईद किसे गले लगाउँ मैं,...
जब मेरा हिन्दुस्तान, आपस में ही लड़ रहा है |

जो ज़िंदा बच गये उन्हे मुबारक ज़िंदगी की दूं,
या किसी की कब्र पर सिवैइयाँ चढ़ाउँ,
सोच रही हूँ, अबकी ईदी,
किसी गैर के नाम ही कर आउँ |
रोज़ा रख,
आज इफतियारी पर किसकी आस लगाउँ,
पहले जाकर शिया, सुन्नियों को
कुछ मज़्ज़ब की बाते तो बताउँ |
डरती हूँ,
इस ईद कही बाहर निकली तो मैं ही ना मार जाउँ,
सोच रही,
भेड़ कपाट, ये ईद अकेले ही मनाउँ ||

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