Thursday 17 December 2015

हमारी झुकी निगाहो से पर्दे हटाकर दर्द पढ्ने की
उनकी आदत नहीं बदली
लाख मना करने पर पीछे आने की
उनकी आदत नहीं बदली |
कह दिया है उनसे नहीं हमे मोहब्बत
उनकी इज़हार करने की आदत नहीं बदली |
हम बेवफा, राहे बदलते रहे
उनकी साथ चलने की आदत नहीं बदली |
दुख मेरा, दर्द उनका
सुख मेरा, खुशी हमारी
उनकी 'अपना' कहने की आदत नहीं बदली |
हम तो नज़रें मिलने से पहले ही मुह मोड़ लिया करते हैं
उनकी मेहबूबा कह कर बुलाने की आदत नहीं बदली |
ना कहे होंगे अल्फ़ाज़ दो हमने उनसे सीधे मुह
उनकी चिट्ठियाँ लिखने की आदत नहीं बदली |
हम सपनो में इधर रहे अपने लीन
उनकी करवटे बदलने की आदत नहीं बदली |
खुश रहे हम हमेशा अपने में ही
किताबों में तस्वीरें छिपाने की उनकी आदत नहीं बदली |
साड़ी में लिपटी लज्जाए
अम्मा सबको बड़ा भाए
तन की गोरी, मन की भोली
प्रेम की मूरत, खिलती सूरत
आँखों में दुनिया बसाए
मीठी मीठी बात सुनाए |
माँग में उसके सिंदुरा सोहे
पाँव में उसके पायल होवे
पल्लू में सपने दबाए
अम्मा सबको बड़ा भाए |
साड़ी में लिपटी लज्जाए
अम्मा सबको बड़ा भाए
कानो में बाली, मेले वाली
पापा जो इसको दिलाए
उसे बड़ा भाए, पहने इठलाए
सबको दिखलाए
अम्मा लज्जाए
सबको बड़ा अम्मा भाए |
झोली उसकी, जन्नत की डोरी
बिटिया को लोरी सुनाए
पराया उसे कह ना पाए
अम्मा छुप छुप आँसू बहाए |
रसोई में दिन भर बिताए
अम्मा कह ना किसी को पाए
साड़ी में लिपटी लज्जाए
अम्मा, सबको बड़ा भाए
उसकी ममता उसका गहना
सबका दुखड़ा उसका अपना
अपने दर्द छिपाए
अम्मा कह कह रुक जाए |
लल्ला को जो दुख होवे तो
गोद में सीने लगाए
उसके दुख बिसराए
अम्मा उसको बड़ा भाए |
साड़ी में लिपटी लज्जाए
अम्मा, सबको बड़ा भाए