Thursday 1 January 2015

हाँ मैं नारी हूँ, अबला हिन्दुस्तानी हूँ |
कभी आई थी सीता बनकर, कभी दुर्गा का मैने रूप लिया
पर अब तो हर गली चौपरे मैने अपने दुपट्टे से खुद का मुह ढँक लिया |
जो मर्द तिराहों पर बैठे हैं निगरानी को
उनसे डर कर मैने अपने सपनो को रौंद दिया |
जो चौखट मैने लाँघ दिया, भर भर ताने सुनती हूँ-
मैं वही नारी हूँ, अबला हिन्दुस्तानी हूँ |
जो पहने कपड़े छोटे मैने, बदचलन मुझे बता दिया
जो तोड़े मैने रिश्ते, हाहाकार मचा दिया |
देखकर जिस्म को उसने मेरे, हाय ! लाल टपका दिया
लड़के वालों ने मुझको "ना कुछ ख़ास" ठहरा दिया |
जो बनी बेटी, बहू, माँ मैं, बंधानो में बँधती हूँ
घर के भीतर भी मैं रोज़ थोड़ा मरती हूँ
ताने सुन सुन कर खुद को कोसा करती हूँ
हाँ मैं नारी हूँ, अबला हिन्दुस्तानी हूँ |
जो निकली मैं पल्लू से बाहर, तेज़ाबों की बारिश होती है
दूर दूर से ताड़ ताड़ के, निगरानी मुझपे होती है|
भरी दोपहरी मेरे अंग से दुपट्टा घसीट लिया
मेरे खुद के घरवालों ने मुझे कलमूही नसीब दिया |
जो अरमानों की माला पिरोती थी, उसका धागा मैने तोड़ दिया
हाँ उनके लिए मैने खुद से मूह मोड़ लिया |
हाँ थोड़ा घबराती हूँ, लज़्जती हूँ
इठलाती हूँ, बलकाती हूँ
सहम कर दुबक जाती हूँ
हाँ मैं नारी हूँ, अबला हिन्दुस्तान कही जाती हूँ |
वो मुझसे कहते हैं, मैं इज़्ज़त उनके घर की हूँ
सुन सुन कर ये मैं कभी चैन से ना सोती हूँ,
उंजले मे अकेले चलने से मैं रास्ते पे डरती हूँ|
वो बलात्कारी ही सबला मुझको कहते हैं
जो अंधेरे में चलनी मुझको करते हैं
ज़ोर ज़बरदस्ती करके वो मुझको
दरवाज़े के पीछे ही रखते हैं |
मैं वो हूँ जो खुद के नैनों के आँसू पिए हुए हूँ
हाँ मैं नारी हूँ, अबला हिन्दुस्तानी हूँ |
पढ़ कर रोज़ अख़बारों में, देख न्यूज़ चैनलों पर
वो भूल मुझको जया करते हैं
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में, वो पराया धन मुझको कहते हैं
पाल पोशकर बड़ा किया तो, दहेज़ में बेचा करते हैं
आज कल तो मेरे अपने ही, मेरे जिस्म का सौदा किया करते हैं |
बोल पडू जो अपने हक को, ज़िंदा जलाई मैं जाती हूँ-
हिन्दुस्तानी हूँ, अबला नारी कही जाती हूँ ||
           

 

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