Saturday 10 January 2015

बरसों पहले
एक संदेशा आया था
सावन-भादों की शाम-
मेहन्दी रचेगी |
इस सरसों के माह-
फागुन फूल खिलेंगे
रंगोली से मुख निखरेंगे
कुमकुम, बेंदी दमकेगी
अँगने शगुन बरसेंगे
अपनों के गुलदस्ते सजेंगे|
चौखटे, दरवाज़े
मंगल होएंगे
सुख बरसेगा !
घर-घर उंजियला होगा |
आशाओं के फूल निकलेंगे
कामनाओं के फल चढ़ेंगे|
नरम खुश्बू के बीच
हम सब साथ खड़े होंगे |
सम्मान की किल्कारी गूंजेगी
स्वाभीमान दम तोड़ेगा|
हाय ! हर बार जैसे
अबकी भादों फिर
खुशियों का रंग बरसेगा |

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