Saturday 10 January 2015

गर मौत किरानों पर बिकती
तो थोक में तोड़ा हम भी खरीद लेते
जो मर मर के जीते हैं रोज़,
उन्हे थोड़ी भेंट में दे देते |
यूँ तो जी कर कुछ ना कमा सके
मर कर -
कफ़न भर ज़मीं के हकदार तो होंगे |
ओढ़ कर दो गज़ ज़मीं
कौन सोना चाहता है,
पर मौत से आँख मिचोली करने वालों का भी
अपना ही अफ़साना है |
गर सस्ती होती मौत थोड़ी,
तो किरानों से हम भी ले ही लेते
क्या पता किसी रोज़, जी कर ऊब गये
तो मौत को ही आज़मा लेते |
वैसे तो जीने से कोई गिले नहीं-
पर गर "सेल" में बिकती मौत
तो एक दफे, हम भी अपना ही लेते |
शिकवे जो होंगे ज़िंदगी से कभी
तो खरीद कर मौत, देह में उतार लेंगे
क्या हुआ जो फूटी कौड़ी नहीं भाती जेब को-
किराने वाला भी तो यार है अपना,
आज फिर उससे, मौत उधर ले लेंगे |
और
गर हो ऐसा कि बिके मौत किरानों पर
तो घुट घुट के जीने से अच्छा
हम मौत को ही गले लगा लेंगे |

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