Friday 8 May 2015

अब तो काले कजरे के पीछे से
मृगनैनी पलके हौले उठती हैं
जब खाली खाली नज़मों से
दिल की धड़कन बढ़ती है -
बस सूनेपन की बाते कहती हैं |
जब भरी दोपहरी पेड़ों के पीछे से
छाओं अंगड़ाई लेती है
कोयल की कूंक भी
भारी ठोकर सी लगती है
तब मन की कोरी दीवारें -
बस सूनेपन की बातें कहतीं हैं |
जब दर्द दुनिया का, अपने से कम लगता है
ममता का मर्म भी, पत्थर सा लगता है
भूले क़िस्सों को पढ़कर
आँखों से अश्रु गिरता है
तो चीरकर, खोखला कंठ -
बस सूनेपन की बातें कहता है |
जब मधुमास पतझर सा दिखता है
जब चंदन आँखों मे चुभता है
जब ज़ुल्फो का लहराना दुशवारी लगता है
जब बाहों में काँटा सा चुभता है
तब नर्म सा आँसू भी -
सूनेपन की बातें कहता है |
जब ज़िंदगी प्रश्‍न की पहेली लगती है
मीठी बाँसुरी करकस सी लगती है
जब प्रिय ! तुमसे नफ़रत सी होती है
तो सपनों में भी -
सूनेपन की बातें होतीं हैं |

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