Sunday 5 April 2015

जब वर्षों बाद
आँगन में फिर दिवाकर आया
तुलसी का
नया सा पत्ता जब लहराया
सूखे उपवन में
एक पीला फूल मुस्काया
बंद कमरे के भीतर
तिरछी खिड़की पर
सोन चिरैया ने गाना गुनगुनाया
माथे पर
कतरा भर सिलवट का ना आया
जब लिखे बोलों में
फिर स्वर आया
मुरझाए चेहरे पर
रंग सुनेहरा दमकाया
जब बेसुरे ने
गाकर शेर सुनाया
जब घोर  तमस के बाद
पांखी ने मन बहलाया
जब रंगोली ने
खुद में रंग भरवाया
जब चलते चलते
खुद में एक उछाल आया
जब बंजर मन में
एक ख्याल तुम्हारा आया ...

 

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