Thursday, 21 May 2015

बरसो दबा कर रखा था
खत में मैने
नाम तेरा
पन्नो को पलट कर
होता था ऐतबार तेरा
कभी अकेलेपन में तो
कभी भीड़ में
जब भी लगता था तुम आओगे
तो खतों को समेट कर
अक्सर तुमसे मुलाकात
किया करते थे|

देर सबेर  कभी
जब खुद से नफ़रत होती थी
तब भी
इन खतों मे दबे नाम से
हम छुप कर
प्यार किया करते थे |

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