Sunday, 10 May 2015

बड़े दिनो के बाद याद आज फिर अम्मा की आई है |

छोटे छोटे सपनो वाली वो मीठी पुरवाई है
सन्नाटो को चीरती वो मधुर शहनाई है
आँचल के कोनो मे सिमटी वो कठिन सिलाई है
लोरी की चौपाई से सरकती माँ अंगड़ाई है
अंधेरों में रहने वाली वो मेरी परछाईं है
बड़े दिनो के बाद याद आज अम्मा की आई है |

कभी थपकी देकर परिलोक की सैर मुझे करती है
कभी मुझे खिलाकर खुद भूखा सो जाती है
वो तो उजड़े घर मे खिलखिलती फुलवारी है
माँ तो हंस कर अंधेरे मे खुद जल जाती है
कभी कभी तो मुझे डाँट कर खुद रोने लग जाती है
हर रात अकेले सोने से पहले याद अम्मा की आती है |

भीतर भीतर बलके फिर भी रेशम से वो रहती है
तिनका तिनका बुनकर यादों की खुश्बू बोती है
दुखड़ों की नइया में बैठी वो मुझे हंसाया करती है
कभी निर्मल कभी कठोर वो कलकल बहती रहती है |

हर शाम जैसे फीकी पड़ती है
मन से बस एक आह निकलती है
माँ तू गर पास होती
तो रख गोद मे सर बस जब इतना कहती
"मेरी लाडो सबसे प्यारी"
तो मैं भी आँखे मींझ कर झट से सो जाती
माँ दूर देश में याद तेरी बड़ी आती |

     

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