जब वर्षों बाद
आँगन में फिर दिवाकर आया
तुलसी का
नया सा पत्ता जब लहराया
सूखे उपवन में
एक पीला फूल मुस्काया
बंद कमरे के भीतर
तिरछी खिड़की पर
सोन चिरैया ने गाना गुनगुनाया
माथे पर
कतरा भर सिलवट का ना आया
जब लिखे बोलों में
फिर स्वर आया
मुरझाए चेहरे पर
रंग सुनेहरा दमकाया
जब बेसुरे ने
गाकर शेर सुनाया
जब घोर तमस के बाद
पांखी ने मन बहलाया
जब रंगोली ने
खुद में रंग भरवाया
जब चलते चलते
खुद में एक उछाल आया
जब बंजर मन में
एक ख्याल तुम्हारा आया ...
आँगन में फिर दिवाकर आया
तुलसी का
नया सा पत्ता जब लहराया
सूखे उपवन में
एक पीला फूल मुस्काया
बंद कमरे के भीतर
तिरछी खिड़की पर
सोन चिरैया ने गाना गुनगुनाया
माथे पर
कतरा भर सिलवट का ना आया
जब लिखे बोलों में
फिर स्वर आया
मुरझाए चेहरे पर
रंग सुनेहरा दमकाया
जब बेसुरे ने
गाकर शेर सुनाया
जब घोर तमस के बाद
पांखी ने मन बहलाया
जब रंगोली ने
खुद में रंग भरवाया
जब चलते चलते
खुद में एक उछाल आया
जब बंजर मन में
एक ख्याल तुम्हारा आया ...
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